मानव मन के रहस्य इस संसार के समस्त रहस्यों से भी गहरे हैं। डॉ सिग्मण्ड फ्रायड ने मन की एक स्थलाकृतिक संरचना का वर्णन किया जिसमें उन्होंने मन के तीन स्तरों के बारे में बताया है। उन्होंने मन की तुलना एक समुद्र में तैरते शैल हिमखण्ड से की है जिसका केवल सात प्रतिशत भाग ही बाहर दिखाई देता जबकि अन्य शेष भाग पानी के अंदर छुपा रहता है। इसी को उन्होंने तीन स्तरों में बाँटकर वर्णन किया है।
इन्हें
फ्रायड ने निम्नलिखित नामों से पुकारा है –
(5.4.1)
चेतन मन (Conscious)
(5.4.2)
पूर्वचेतन मन (Preconscious)
(5.4.3) अचेतन मन
(Unconscious)
5.4.1
चेतन मन
मन के उस भाग को चेतन कहा गया है
जिसमें वे सभी अनुभव और संवेदनाएँ विद्यमान हैं जिनका सम्बन्ध वर्तमान से है।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि चेतन के अंतर्गत वह सभी शारीरिक और मानसिक
क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति व्यक्ति जागरूक होता है। जिन विचारों,
इच्छाओं, अनुभवों से हम वर्तमान समय में अवगत
रहते हैं वे सभी संयुक्त होकर चेतन का निर्माण करते हैं। चेतन मन हमारी वर्तमान
जागरूकता को संदर्भित करता है। जब हम अपनी इंद्रियों से जानकारी प्राप्त करते हैं,
उसका विश्लेषण करते हैं, और फिर उस जानकारी के
आधार पर निर्णय लेते हैं, तो हम अपने चेतन मन का उपयोग कर
रहे होते हैं। उदाहरण के लिए हम जो अभी पढ़
रहे हैं, या कोई चलचित्र देख रहे हैं, या
संगीत सुन रहे हैं आदि सब क्रियाएँ जिनके प्रति हम सचेत हैं, वह चेतन है। रेबर एवं रेबर (2001) के
अनुसार “चेतन का तात्पर्य मन के उस पक्ष से माना जा सकता
है। जिसमें वे सब कुछ विद्यमान रहता है, जिसकी
जानकारी व्यक्ति को क्षण मात्र के लिए होती है”।[1]
किश्कर (1985) के अनुसार "चेतन क्रियाओं
का सम्बन्ध तात्कालिक अनुभवों से होता हैं”।[2] चेतन
से जुड़े तात्कालिक अनुभवों में वे सब अनुभव आते हैं, जो हमें
शारीरिक, हमारी इद्रियों तथा वर्तमान में हमारे आस-पास घट
रही घटनाओं से तत्काल होते हैं। इस सबको चेतन को अनुभव करने के लिए हमारे
कर्मेन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रियाँ, शरीर
के अन्य अंग तथा हमारा मस्तिष्क मुख्य भूमिका निबाह रहा होता है। डॉ सिग्मंड
फ्रायड ने चेतन मन की अवधारणा ने स्पष्ट किया है कि चेतन का सम्बन्ध बाह्य जगत की
वास्तविकताओं के साथ सीधा होता है। इसी अवधारणा को पुष्ट करते हुए ‘दी कॉन्ससियस माइंड’ पुस्तक के 'ए कैटलॉग ऑफ़ कॉन्ससियस एक्सप्रिएंसेस' लेख में
लेखक डेविड जे. चाल्मर्स (1996) ने चेतन मन में होने
वाले वाले अनुभवों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया है [3] -
Ø दृश्य
अनुभव - दृश्य अनुभव की कई किस्मों में,
रंग संवेदनाएं सचेत अनुभव के प्रतिमान उदाहरण के रूप में सामने आती
हैं, जो चेतन मन में आकार की, चमक की,
अँधेरे की सूचना को सूचना में समेकित करने की अनुमति देती है।
Ø श्रवण
अनुभव - कुछ मायनों में,
ध्वनियाँ दृश्य से भी अजनबी होती हैं। छवियों की संरचना आमतौर पर
चेतन मन की संरचना से मेल खाती है। जो सुना है और जो चेतन में है, ध्वनि उसके
सामंजस्य से ही चेतन में कल्पना दृश्य बनाती है। संगीत का अनुभव शायद श्रवण अनुभव
का सबसे समृद्ध पहलू है, हमें और पूरी तरह से अवशोषित करना,
हमें इस तरह से घेरना कि एक दृश्य क्षेत्र हमें घेर लेता है और चेतन
से परे ले जाता है।
Ø स्पर्शोन्मुख
अनुभव - जो हम अनुभव करते हैं: मखमल की भावना
के बारे में सोचें, ठंडी धातु, या चिपचिपा हाथ, या रूखी ठुड्डी चेतन में एक पृथक
अनुभव या दिशा निर्देश अवतरित करते हैं।
Ø घ्राण
अनुभव - एक पुरानी अलमारी की महक के बारे में
सोचो,
सड़ते हुए कचरे की बदबू, नई कटी घास की आहट,
गरमागरम सुगंध ताजी पकी हुई रोटी से आ रही गंध कुछ मायनों में सबसे
रहस्यमय है। एकरमैन (1990) ने इसे "दी म्यूट सेंस, दी वन विथाउट वर्ड्स " कहा है।
Ø स्वाद
के अनुभव - मनोभौतिक जांच हमें बताती है कि केवल
स्वाद धारणा के चार स्वतंत्र आयाम: मीठा, खट्टा,
कड़वा, और नमक। लेकिन यह चार-आयामी स्थान
हमारी गंध की भावना के साथ जुड़ता है। संभावित अनुभवों की एक बड़ी विविधता उत्पन्न
चेतन मन में हो जाती है, जैसे कढ़ी और निम्बू के खट्टे में,
शहद और आम की मिठास में अंतर का अनुभव और आनंद।
Ø गर्म
और ठंडे अनुभव - एक दमनकारी गर्म,
आर्द्र दिन और एक ठंढा शीतकालीन दिवस आश्चर्यजनक रूप से भिन्न
गुणात्मक अनुभव प्रदान करता है। यह भी सोचो किसी की त्वचा पर आग के करीब होने से
गर्मी की संवेदनाएं, और गर्म ठंड की सनसनी जो किसी को
अत्यधिक ठंडी बर्फ को छूने से मिलती है।
Ø दर्द
- दर्द सचेत अनुभव का एक आदर्श उदाहरण है,
प्रिय द्वारा दिया गया दर्द। शायद यह इसलिए है क्योंकि दर्द का एक
बहुत ही विशिष्ट वर्ग है गुणात्मक अनुभव है, और किसी भी
संरचना पर सीधे मैप करना मुश्किल है। दर्द दुनिया में या शरीर में, हालांकि वे आमतौर पर कुछ के साथ शरीर का भाग जुड़ा होता है। इस वजह से,
दर्द इससे भी अधिक व्यक्तिपरक लग सकता है। कई तरह के दर्द के अनुभव
होते हैं, तेज चुभन से लेकर तेज दर्द और तेज जलन से लेकर
सुस्त दर्द तक।
Ø जाग्रत
विचार - कुछ चीजें जो हम सोचते हैं और मानते
हैं,
हमारे पास उनके साथ जुड़ा कोई विशेष गुणात्मक अनुभव नहीं होता है तब
भी हम उन पर क्रिया करते हैं। यह विशेष रूप से स्पष्ट, आकस्मिक
विचारों पर लागू होता है जो व्यक्ति स्वयं के बारे में सोचता है,और विभिन्न विचारों के लिए जो किसी की चेतना की धारा को प्रभावित करते
हैं।
Ø मानसिक
कल्पना - हमेशा भीतर की ओर बढ़ते हुए,
उन अनुभवों की ओर जो पर्यावरण या शरीर में विशेष वस्तुओं से जुड़े
नहीं हैं, लेकिन हैं आंतरिक रूप से उत्पन्न कुछ अर्थों में,
हमारी मानसिक छवियों पर आते हैं। जैसे श्रवण द्वारा सुनी बात की
कल्पना।
Ø भावनाएँ
- भावनाओं में अक्सर विशिष्ट अनुभव जुड़े होते हैं।
एक खुश मिजाज की चमक, एक गहरे अवसाद की
थकान, क्रोध की भीड़ की लाल - गर्म चमक, अफसोस की उदासी, ये सब चेतन मन के अनुभव को गहराई से
प्रभावित कर सकता है।
Ø गर्म
और ठंडे अनुभव - एक दमनकारी गर्म,
आर्द्र दिन और एक ठंढा शीतकालीन दिवस आश्चर्यजनक रूप से भिन्न
गुणात्मक अनुभव प्रदान करता है। यह भी सोचो किसी की त्वचा पर आग के करीब होने से
गर्मी की संवेदनाएं, और गर्म ठंड की सनसनी जो किसी को
अत्यधिक ठंडी बर्फ को छूने से मिलती है।
यह
सभी अनुभव हमें चेतन मन से होते हैं या कहें इन अनुभवों का साक्षी चेतन मन है। किस
अनुभव पर क्या प्रतिक्रिया करनी है या क्या भाव प्रकट करना है इसका निर्देश चेतनीय
मस्तिष्क ही तो करता है। अनेक बार हमने देखा है कि नाक बंद होने से गंध का न आना
और तेज बुखार में मुँह से स्वाद का गायब हो जाना। शरीर की व्याधि से चेतन प्रभावित
होता है और चेतन से शरीर प्रभावित होता है। चेतन की प्रकृति के विषय में यदि गहनता
से विचार किया जाये तो वह मनोदैहिक समस्याओं की ओर बढ़ता है। शरीर में कहीं काँटा
चुभ जाने से सम्पूर्ण चेतना उसी ओर केंद्रित हो जाती है,
जब तक काँटा निकाल न दिया जाय। जब हम किसी व्यक्ति से बात कर रहे
होते हैं तो उससे सम्बंधित जो अनुभव और विचार हमें हो रहे होते हैं वे चेतन हैं।
फ्रायड ने चेतन मन की कुछ खास विशेषताएँ बताई हैं जैसे चेतन मन में वर्तमान के
विचारों और घटित होने वाली घटनाओं की जीवित स्मृति होती है अतः उनकी पहचान सरल
होती है तथा प्रत्याह्वान भी सरल होता है।
5.4.2
पूर्वचेतन मन
पूर्वचेतन मन से आशय ऐसे मन से है जो
न तो पूरी तरह चेतन है और न ही पूरी तरह अचेतन है। इसमें कुछ ऐसी इच्छाएँ,
विचार या भाव होते हैं जो हमारे चेतन अनुभव में नहीं होते हैं लेकिन
थोड़ा प्रयास करने से वे हमारे चेतन मन में आ जाते हैं। रेबर एवं रेबर (2001)
के अनुसार “अवचेतन का तात्पर्य गत्यात्मक
मन के उस भाग से है। जिसमें ऐसी इच्छाएँ या विचार निवास करते हैं, जिनकी जानकारी व्यक्ति को तत्काल तो नहीं रहती लेकिन जरा से प्रयास से
संभव हो जाती है”। [4]
डॉ पद्मा अग्रवाल (1955)
अपनी पुस्तक "मनोविश्लेषण और मानसिक क्रियाएँ" में
लिखती हैं " अचेतन मन की इच्छाओं का चेतन मन और पूर्वचेतन मन में प्रवेश करना
साधारण बात नहीं है। अचेतन मन और चेतन मन के बीच पूर्वचेतन मन एक द्वारपाल की तरह
है जो अचेतन मन की अवाँछित इच्छाओं को चेतन मन तक आने से रोक देता है। फ्रायड की
शब्दावली में इसे सेंसर कहते हैं। इस कारण अचेतन मन को अव्यक्त इच्छाएँ प्रकट करने
में कुछ चतुराई बरतनी पड़ती है जिससे पूर्वचेतन मन उसे चेतन के सामने प्रस्तुत कर
सके”।[5] पूर्वचेतन
मन की यह विशेषता है कि उसमें संचित अनुभूतियाँ सहज ही चेतन में प्रवेश कर सकती
हैं। पूर्व चेतन मन की इच्छाएँ बुरी या अनुचित नहीं होती हैं। वे स्वभाव में कुछ
चेतन मन की इच्छाओं के सामान होती है और अचेतन मन की इच्छाओं से भिन्न विरोधी हो
सकती हैं। पूर्वचेतन चेतन और अचेतन के मध्य सेतु का कार्य भी करता है। जैसे आप
अपने किसी पुराने सहपाठी को बाजार में देखकर पहचान लेते हैं लेकिन उसका नाम याद
नहीं आ रहा होता है। लेकिन जैसे दिमाग पर थोड़ा जोर डालते है वह याद आ जाता है इसका
माध्यम पूर्वचेतन ही होता है। आपने उस मित्र का नाम भूला नहीं था बल्कि चेतन के
अभ्यास में न रहने के कारण वहाँ से हटकर पूर्वचेतन में चला गया था जो प्रत्याह्वान
करने पर तुरंत सामने आ गया। डॉ. कमल कुमार सक्सेना
(1993) ने अपने शोध 'गीता एवं
मनोविज्ञान में चेतन की अवधारणा' में बताया है कि
“चेतन, अचेतन से अति दूर, अति गुह्य एवं अति अंतरम में स्थित है। जबकि अवचेतन तुरंत, सामयिक रूप से उपस्थित होने वाला चेतन के अति निकट है। अवचेतन के विचार
थोड़ा बहुत घूमकर चेतन की धारा में प्रवाहित होते रहते हैं। इसलिए अवचेतन
मनोविज्ञान में अचेतन से अधिक व्यवहारिक है तथा वह अचेतन का पिघला हुआ और चेतन की
तलछट के रूप में विद्यमान रहता है। फ्रायड ने इस अवचेतन को पूर्वचेतन कहा है। उनके
अनुसार यह पूर्वचेतन, चेतन की पूर्वावस्था है। यदि अचेतन
विचारों की आदिम स्थिति है तो अवचेतन उसकी अविकसित स्थिति। फ्रायड जैसे
मनोवैज्ञानिकों ने चेतन के अतिरिक्त अवचेतन तथा अचेतन का चिकित्सीय क्षेत्र में
भरपूर प्रयोग किया तथा कई मानसिक गुत्थियों का सफलतापूर्वक समाधान किया है”।[6]
संतोष
गार्गी और परितोष गार्गी अपनी पुस्तक ‘मनोविश्लेषण और उसके जन्मदाता’ में
पूर्वचेतन के स्वरूप को समझाते हुए कहती हैं कि "पूर्वचेतन वह है जो चेतना के
बिलकुल निकटवर्ती है और आसानी से चेतनीय है। अर्थात जो चेतना से तनिक दूर हो गया
है परन्तु गतिपूर्ण रूप में अचेतन नहीं है। वास्तव में इसकी विशेष निजी सत्ता नहीं
है बल्कि यह यह तो अचेतन मन से चलकर चेतना में व्यक्त होने वाले भावों की,
व्यक्त होने से पूर्व एक अवस्था है। जिन भावों को चेतन मन में व्यक्त
होने से रोक दिया जाता है वो यहीं से वापिस हो लेते हैं।"[7] गार्गी बहिनों की यह बात सत्य है कि पूर्वचेतन मन की कोई विशेष निजी सत्ता
नहीं है क्योंकि फ्रायड स्वयं इसे एक बार के लिए ध्यान न देने की वकालत
अपने लेख 'दी अनकॉन्ससियस' में
करते हैं। “We shall also, moreover, be right the rejecting the term “subconsciousness”
as incorrect and misleading.”[8]
5.4.3
अचेतन मन
फ्रायड के अनुसार मन का सबसे गहरा एवं
बड़ा भाग अचेतन है। अचेतन का अर्थ है जो चेतन से परे है। जो भी चेतन नहीं है वह
अचेतन है। अचेतन चेतना का अंतिम स्तर कहा गया है।
यह विचारों, यादों और सहज इच्छाओं
से बना है जो हमारे भीतर गहराई से दबे हुए हैं, हमारी सचेत
जागरूकता से काफी नीचे हैं। जबकि हम उनके अस्तित्व से अनजान हैं, हमारे व्यवहार पर उनका काफी प्रभाव पड़ता है। कई बार भारतीय ग्रामीण
परिवेश में हमने लोगों को यह कहते सुना है कि "इंसान को अपनी पीठ नहीं
दिखाई देती है", इसका अर्थ है इंसान अपने बारे में
कई तथ्यों से अनभिज्ञ रहता है। मनुष्य के कई व्यवहार जो वह चेतन जगत में कर रहा
होता है उसी के बीच में अचानक या जाने-अनजाने वह कुछ ऐसे व्यवहार अकस्मात कर देता
है जो उसकी प्रकृति के विपरीत होते हैं। यह वह व्यवहार होते हैं जो उसके अचेतन की
गहराई से निकलकर प्रकट होते हैं। जबकि हमारे व्यवहार अक्सर उन अचेतन शक्तियों को
प्रकट करते हैं जो उन्हें प्रेरित करती हैं, हम अचेतन मन में
संग्रहीत जानकारी तक आसानी से नहीं पहुंच पाते हैं। अपने बचपन के दौरान, हमने कई तरह की यादें और अनुभव जमा किए, जिन्होंने
हमारे वर्तमान विश्वासों, आशंकाओं और असुरक्षाओं को आकार
दिया। हालाँकि, हम इनमें से अधिकांश यादों को याद करने में
असमर्थ हैं। वे अनदेखी ताकतें हैं जो हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं। टिमोथी
डी विल्सन (2002) अपनी पुस्तक 'स्ट्रेंजर तो आवरसेल्फ' में अचेतन की प्रकृति
समझाते हुए लिखते हैं कि "अचेतन मन
में मानसिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं जो चेतना के लिए दुर्गम होती हैं लेकिन जो
निर्णय, भावनाओं या व्यवहार को प्रभावित करती हैं”।[9]
ब्राउन
(1940)
ने फ्रायड के अचेतन मन सम्बन्धी विचारों इस प्रकार परभाषित किया है
"अचेतन मन का वह भाग कहलाता है, जिसमें व्यक्ति की
अनुभव की हुई ऐसी विषयवस्तुएँ रहती हैं, जिन्हें व्यक्ति
अपनी इच्छानुसार याद नहीं कर पाता, ये अनुभव या तो स्वयं
व्यक्ति के क्रियाकलापों में अनजाने में प्रकट हो जाते हैं अथवा सम्मोहन या अन्य
प्रायोगिक तरीकों द्वारा जाने जा सकते हैं”।[10]
अचेतन
मन में रहने वाले विचार एवं इच्छाओं का स्वरूप कामुक,
सामाजिक, अनैतिक तथा घृणित होता है। ऐसी
इच्छाओं को रोजमर्रा के जीवन में पूरा करना संभव नहीं होता, अतः
उनको चेतन मन से बहिष्कृत कर दिया जाता है और वह दमित होकर अचेतन मन की गहराई में
बैठ जाती हैं। यह दमित इच्छाएँ अचेतन में जाकर पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाती है
वरन कुछ समय या ज्यादा समय के लिए निष्क्रिय हो जाती हैं और अवसर पाते ही अकस्मात
व्यवहार के रूप में फूट पड़ती हैं। यह दमित इच्छाएँ अचेतन से चेतन में आने के नए-नए
रास्ते खोजती रहती हैं। अगर सीधा मार्ग न मिले तो स्वप्न, दैनिक
जीवन की मनोविकृतियाँ और अन्य अवसरों के रूप में चेतन में व्यक्त होती हैं। उदाहरण
के लिए एक व्यक्ति ने किसी की हत्या करके उसकी लाश को गहरे पानी में फेंक दिया
ताकि समाज में उसके अपराध का पता न चल सके।
लेकिन जब जाँच-पड़ताल हुई और खोजबीन की गई तब पानी की गहराई से उस लाश को
निकल लिया गया। ठीक ऐसे ही मनोविश्लेषक इन दमित इच्छाओं (जो अचेतन की गहराई में
दबी हुई हैं) सम्मोहन (Hypnosis), स्वप्न अध्ययन
(Dream Study) या मनोविश्लेषण (Psychoanalysis)
तकनीक से बाहर निकाल लेते हैं।
फ्रायड कहते हैं कि अचेतन मन का सबसे
बड़ा हिस्सा होता है जिसमें बाल्यावस्था की दमित इच्छाएँ,
लैंगिक इच्छाएँ, मनोसंघर्ष से सम्बंधित
इच्छाएँ (जो अधूरी रह गयी) संग्रहित रहती हैं। इसका एक उदाहरण ‘मनोविश्लेषण और उसके जन्मदाता’ पुस्तक में देते
हुए उसकी लेखिका गार्गी बहिनें लिखती हैं कि “दिन-प्रतिदिन
के अनुभव की बात है कि काई बार विचित्र विचार,अनिश्चित
भावनाएँ व प्रतिमूर्तियाँ, चिर-विस्मृत-स्मृतियाँ और असंगत
विचार ऐसी सीमा तक अचेतन से चेतन में आ घुसते हैं कि उन्हें परे धकेलने के लिए
प्रयत्न करना पड़ता है। कई बाल्यकाल की स्मृतियाँ बेढब रूप से ऐसे सामने आ जाती हैं
कि जैसे वर्तमान जीवन में उनकी कोई आवश्यकता हो। एक बार मुझे मेरे मित्र ने बताया
कि "मैं तीन वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के साथ दिल्ली गया, परन्तु मुझे बुखार हो जाने के कारण वहाँ से तत्काल वापिस लौटना पड़ा। आज जब
मेरी आयु 35 वर्ष है, उन दिनों की इस
घटना का चित्र मेरे मन में रह-रहकर आ उपस्थित होता है कि मैं देखता हूँ कि हम
दिल्ली की तंग सी गली की धर्मशाला में दूसरी मंजिल पर ठहरे हुए हैं और मैं नलके की
नीचे बैठा नहा रहा हूँ। चिरकाल तक मुझे नहाने के कारण बुखार आने की शिकायत रही”।[11]
इस प्रकार हम पाते हैं कि यह घटनाएँ कोई कोरी कल्पना नहीं है बल्कि हमारे अचेतन
में दबी, पनपती हुई स्मृतियाँ या दमित इच्छाएँ ही हैं। फ्रायड
(1915) के अनुसार अचेतन मन मानव व्यवहार का
प्राथमिक स्रोत है। वह पानी में डूबे ऐसे हिमशैल की तरह है जिसका 10 प्रतिशत भाग ही आप देख पाते हैं बाकि मन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा वह
हिस्सा है जिसे आप नहीं देख सकते। अचेतन मन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मन का
ऐसा अव्यक्त पहलू है जिसे व्यक्ति बाह्य निरीक्षण द्वारा इसका सीधा अध्ययन कर सकता
है और न ही अन्तःनिरीक्षण द्वारा इसके अस्तित्व का प्रमाण दे सकता है। जैसे बिजली
के प्रवाह को महसूस किया जा सकता है लेकिन देखा नहीं जा सकता है। बिजली के प्रवाह
के परिणाम जैसे प्रत्यक्ष महसूस किये जा सकते हैं वैसे ही अचेतन के अस्तित्व के
परिणाम स्वप्न, दैनिक जीवन की भूलें या मनोवृत्तियाँ,
सम्मोहन, निंद्रा भ्रमण या अन्य ऐसे उपक्रमों
या घटनाओं से पहचाने जा सकते हैं।
फ्रायड
द्वारा बताये मन के तीनों स्तरों का अध्ययन करने के बाद हम पाते हैं कि चेतन मन वह
भाग है जिससे व्यक्ति पूर्णतः भिज्ञ है और इसकी सारी अनुभूतियाँ ताज़ी हैं।
पूर्वचेतन मन वह हैं जिसकी अनुभूतियों से व्यक्ति वर्तमान में तो भिज्ञ नहीं नहीं
है लेकिन थोड़ा सा प्रयास करने से वह भिज्ञ हो सकता है। अचेतन मन वह भाग है जिसकी
अनुभूतियों से व्यक्ति पूर्णतः अनभिज्ञ रहता है और कोशिश करने पर भी सरलता से
भिज्ञ नहीं हो पाता। ‘मनोविश्लेषण और मानसिक
क्रियाएँ, पुस्तक की लेखिका डॉ पद्मा
अग्रवाल लिखती हैं कि “अचेतन मन एक
अनुभवात्मक मानसिक शक्ति है। यही शक्ति हमारी शारीरिक और मानसिक - चेष्टात्मक (conative),
बोधात्मक (cognitive) और संवेगात्मक (cmotive[12]) क्रियाओं का संचालन करती है। मन के इस भाग का प्रभाव हमारे व्यवहारों और
विचारों पर परोक्ष रूप से सदैव पड़ता रहता है। इसी पर मनुष्य के व्यक्तित्व का
विकास आश्रित है। किसी व्यक्ति के अचेतन मन में विरोधी भावों के द्वन्द से जितनी
ही अधिक भावना ग्रंथियाँ (complexes) पड़ जाती हैं,उतना ही जटिल और संघर्षमय उसका जीवन हो जाता है”।[13] अचेतन की संरचना के विषय में फ्रायड ने समझाया
है कि यह एक विशाल जंगल के समान है जहाँ चारों ओर गहन अन्धकार रहता है, रास्ते ऊबड़-खाबड़, टेड़े-मेढ़े होते हैं। इन्हीं
ऊबड़-खाबड़, टेड़े-मेढ़े रास्तों में इधर-उधर बेतरतीब ढंग से
जीवन के अनगिनत अनुभव, इच्छाएँ, संवेग,
प्रवाह तथा स्व की अवधारणा आदि संचित रहते हैं तथा व्यक्ति को इन
सबके बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। वैसे तो अचेतन के ये सब विषय अव्यक्त
रहते हैं लेकिन यदा-कदा चेतन अभिव्यक्ति में सक्रीय हो जाते हैं। फ्रायड (1915)
ने अचेतन में संचित सभी प्रकार के अव्यक्त विषयों (latent
contents) के बदले शब्दावली में प्रवाह (impulse), संवेग (emotion) या इच्छाएँ (desires
or wishes) का प्रयोग किया है। “We said that there were
conscious and unconscious ideas: but are there also unconscious instinctual
impulses, emotion and feelings.”[14]
मानस
रोग एवं असामान्य मनोविज्ञान पुस्तक में लेखक
बृजेश कुमार मिश्र ने लिखा है कि फ्रायड के अनुसार अचेतन में ये प्रवाह दो
स्रोतों से आते हैं - [15]
Ø अचेतन
में कुछ विषय इस प्रकार के होते हैं जो कभी चेतन का हिस्सा ही नहीं थे। उनकी
उत्पत्ति अचेतन स्तर पर ही 'इड' द्वारा
होती है और चेतन में आने से पूर्व 'ईगो'
द्वारा अचेतन में ही दमित (repress) कर दिया
जाता है। दमन की इस प्रक्रिया को 'प्राथमिक दमन'
(primary repression) कहते हैं।
Ø अचेतन
में कुछ विषय इस प्रकार के विषय या प्रवाह संचित रहते हैं जो कभी चेतना में थे,
लेकिन अब उन्हें 'ईगो' द्वारा अचेतन में दमित (repress) कर दिया गया है
क्योंकि वह समाज, संस्कृति और नैतिक नियमों के विपरीत स्वरूप
लिए हुए थे। दमन की इस प्रक्रिया को द्वितीयक या गौण दमन (secondary
repression) कहते हैं।
उपर्युक्त
दोनों प्रकार से दमित की गई इच्छाएँ और विचार असामाजिक,
घृणित तथा अनैतिक होते हैं जिसे व्यक्ति स्वीकार करने से सुपर ईगो
इंकार कर देता है। चेतन स्तर पर सुपर ईगो के इस कड़े प्रतिबंध के आदेशानुसार ईगो
द्वारा इन्हें अचेतन स्तर पर दमित कर दिया जाता है। फ्रायड ने इस प्रक्रिया को ही
सेंसरशिप (censorship) नाम दिया है। इस प्रक्रिया में
व्यक्ति के भीतर जो संघर्ष पैदा होता है उससे उद्विग्नता, क्षोभ
और तरह-तरह के मनोविकार ब्यक्ति में पैदा होते हैं। फ्रायड आगे कहते हैं कि अचेतन
में दमित सभी प्रकार की इच्छाएँ, अनुभव तथा प्रवाह कामुक
स्वरूप के होते हैं। यह कामुक स्वरूप की भावनाएँ व्यक्ति में बाल्यकाल से ही पायी
जाती हैं। इसलिए अचेतन में बाल्यकालीन यौनेच्छाएं संग्रहित रहती हैं। इनका स्वभाव गत्यात्मक
होता है तथा ये सदैव चेतनाभिव्यक्ति हेतु सक्रीय रहती है। इस तरह की दमित इच्छाएँ
और विषय व्यक्ति के जीवन और व्यवहार को सदा प्रभावित करते रहते हैं।
फ्रायड के अनुसार अचेतन की निम्नलिखित विशेषताएँ
होती हैं –
Ø अचेतन
का स्वरूप गत्यात्मक होता है - सेंसरशिप के कारण
दमित इच्छाएँ अपनी संतुष्टि सीधे नहीं कर पाती हैं तथा अचेतन स्तर पर पूरी होने के
लिए प्रयत्नशील रहती हैं। व्यक्ति का ईगो संतुष्टि के लिए कुलबुला रही दमित
इच्छाओं को इनके मौलिक स्वरूप से छदम भेष (in
disguised form) में बदलकर स्वप्न
(dream) तथा दैनिक जीवन की भूलों (psychopathologies
of everyday life) के रूप में व्यक्त करा देती है। यही अचेतन के
स्वरूप को गत्यात्मक बना देता है।
Ø अचेतन
में कामुक, अनैतिक तथा असामजिक
इच्छाएँ प्रधानतः होती हैं - फ्रायड के
अनुसार अचेतन में जितनी दमित इच्छाएँ होती हैं उनमें प्रधानता यौन इच्छाओं की होती
है। इनकी उपस्थिति व्यक्ति में जन्म से ही होती है। सामाजिक प्रतिबन्ध के कारण ऐसी
इच्छाओं की पूर्ति दैनिक जीवन में नहीं हो पाती इसलिए यह अचेतन में पनाह लिए रहती
हैं।
Ø अचेतन
में परस्पर विरोधी इच्छाएँ साथ-साथ संचित होती हैं -
चेतन मन में दो विरोधी विचारों का एक साथ रहना संभव नहीं होता। अगर ऐसा होता है तो
मानसिक संघर्ष उत्पन्न हो जाता है लेकिन अचेतन में परस्पर विरोधी इच्छाएँ या
भावनाएँ एक साथ विद्यमान रहती हैं। यह एक-दूसरे की संतुष्टि में किसी प्रकार की
बाधा नहीं डालती हैं। जैसे प्रेम-घृणा, सफलता-विफलता,
आकर्षण-विकर्षण के भाव एक साथ चेतनाभिव्यक्ति हेतु सक्रीय रूप से
प्रयत्नशील रहते हैं। इसे फ्रायड ने संक्षेपीकरण (condensation)
कहा है।
Ø अचेतन
में उपांह (id) की प्रवृत्तियाँ
विद्यमान रहती हैं - फ्रायड ने बताया है
कि इड का कार्यस्थल अचेतन होता है। अचेतन में इड की सभी विशेषताएँ विद्यमान
रहती हैं। जैसे इड के समान अचेतन नैतिकता से परे होता है,
अतार्किक होता है। सामाजिक नियम की परवाह नहीं करने वाला होता है।
अचेतन की इच्छाओं का सम्बन्ध इड की तरह बाह्य वातावरण की वास्तविकताओं से नहीं
होता है ये मात्र किसी भी जरिये अपनी संतुष्टि चाहती हैं, चाहे
परिणाम जो भी हो। इसी के कारण यह भी कहा जाता है कि अचेतन मन के सुख के नियम (pleasure
principal) द्वारा निर्देशित होता है।
Ø अचेतन
व्यक्ति के नियंत्रण से परे होता है - अचेतन की
इच्छाओं और प्रवाहों से व्यक्ति प्रायः अनजान रहता है। इसी कारण अचेतन कल्पना और
वास्तविकता में अन्तर नहीं कर पाता है। अचेतन की दृष्टि में हवाई महल बनाना उतना
ही वास्तविक होता है जितना धरती पर भवन
बनाना। व्यक्ति का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। इसी कारण अचेतन में
दबी इच्छाएँ स्वरूप बदलकर स्वप्न और दैनिक जीवन की भूलों के रूप में व्यक्त होती
रहती हैं।
Ø अचेतन
मन का बड़ा हिस्सा होता है - फ्रायड के अनुसार
आकारात्मक मन के तीन भाग हैं - चेतन,पूर्वचेतन
और अचेतन। इनमें सबसे बड़ा भाग अचेतन का होता है। उनके अनुसार मन का 7\8 भाग अचेतन और केवल 1\8
चेतन तथा पूर्वचेतन होता है। जिस तरह हिमशैल का बड़ा भाग
पानी में छुपा रहता है उसी प्रकार मन का बड़ा हिस्सा अचेतन छिपा रहता है। इससे यह
भी निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति की चेतन इच्छाओं या प्रेरणाओं की तुलना में
अचेतन की अनुभूतियों और प्रेरकों को अधिक प्रभावकारी मन जा सकता है।
Ø अचेतन
का अस्तित्व अनुमानित होता है - अचेतन को प्रत्यक्ष
प्रमाणों के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता है। इसको सिद्ध करने के लिए अनुमानित
प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है। स्वप्न अध्ययन, दैनिक जीवन की भूलों तथा मनोविश्लेषण के द्वारा इसे जाने का प्रयास किया
जाता है।
अचेतन
की उपरोक्त विशेषताओं से हमें इसके स्वरूप, क्रिया-कलाप
तथा मानवी व्यवहारों पर पड़ने वाले प्रभावों का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।
[1] Reber, A.
and Reber, E. (2001) Dictionary of Psychology. 3rd Edition, London:
Penguin/Viking, p. 23
[2] सिंह, अरुण कुमार, (2008), आधुनिक
असामान्य मनोविज्ञान, नई दिल्ली : श्री
जैनेन्द्र प्रेस, पृ० - 173
[3]
Chalmers, David J. (1996) The Conscious Mind, New York: Oxford University
Press, p. 25
[4] Reber, A. and
Reber, E. (2001) Dictionary of Psychology. 3rd Edition, London: Penguin/Viking,
p. 27
[5] अग्रवाल, डॉ पद्मा
(1955), मनोविश्लेषण और मानसिक क्रियाएँ, बनारस : भार्गव भूषण प्रेस, पृ०
- 22
[6] सक्सेना, कमल कुमार (1993) 'गीता
एवं मनोविज्ञान में चेतन की अवधारणा, कानपुर : कानपूर विश्वविद्यालय, पृ० - 147
[7] गार्गी, संतोष और गार्गी, परितोष
(1951), मनोविश्लेषण और उसके जन्मदाता, नई दिल्ली : प्रोग्रेसिव पब्लिशर्स, पृ० - 64
[8] Freud,
Sigmund (1915), General Psychological Theory, New York: Macmillan Publishing
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[9] Wilson,
Timothy D, (2002), Strangers to Ourselves, London: The Belk nap Press of
Harvard University Press, p. 27
[10] Brown, J.F. (1940)
The Psychodynamics of Abnormal Behaviour, New York: McGraw Hill Company, p. 44
[11] गार्गी, संतोष और गार्गी, परितोष
(1951), मनोविश्लेषण और उसके जन्मदाता, नई दिल्ली : प्रोग्रेसिव पब्लिशर्स, पृ० - 54
[12] A French
language words
[13] अग्रवाल, डॉ पद्मा
(1955), मनोविश्लेषण और मानसिक क्रियाएँ, बनारस : भार्गव भूषण प्रेस, पृ०
- 35
[14] Freud,
Sigmund (1915), General Psychological Theory, New York: Macmillan Publishing
Company, P. 126
[15] मिश्र, बृजेश कुमार (2016) मानस
रोग एवं असामान्य मनोविज्ञान, दिल्ली : राजकमल प्रेस, पृ० - 110
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