कहा गया है जीवन चलने का नाम है। मनुष्य जीवन की सफलता इसी में निहित है कि वह चलायमान रहे। मनुष्य के लिए जीवन वहाँ मरण समान हो जाता है जब उसकी साँसे तो चल रही हो लेकिन जीवन थम गया हो। मनुष्य का जीवन कई बार भौतिक असफलताओं से रुक जाता है। व्यापार में घाटा, नौकरी का चले जाना, परिवार में खर्चा चलने वाले की मृत्यु इत्यादि अनेक ऐसे बाह्य तत्त्व है जिनसे चलायमान जीवन की गति कुछ समय के लिए अवरुद्ध हो जाती है। लेकिन यह मनुष्य अपनी प्रतिभा, सामाजिक व्यवहार तथा अथक प्रयासों से इन सब पर कुछ ही समय में विजय पा लेता है।
कई बार शारीरिक बीमारियां भी जीवन का मार्ग अवरुद्ध करती हैं। लेकिन शारीरिक चिकित्सा के माध्यम से अनुभवी डॉक्टर उसे इस समस्या से भी निजात दिला देते हैं। लेकिन कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनकी जड़ शरीर में कहीं खोजने पर भी नहीं मिलती हैं और ग्रसित व्यक्ति का जीवन रुक जाता है। उसे समझ ही नहीं आता कि अपने मन-मस्तिष्क से सब कुछ सही योजना बनाकर चलने के बावजूद यह समस्या उसके भीतर कहाँ पैदा हुई है।
19 वीं शताब्दी के अंत-अंत तक ऐसा समझा जाता था कि रोग सिर्फ दैहिक कारणों से होते हैं, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक। डॉ सिग्मण्ड फ्रायड ही पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने इस विचारधारा का खंडन किया और बताया कि मानसिक रोग का आधार पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक होता है। मानसिक रोग का उपचार शरीर विज्ञानी और उनकी दवाओं से नहीं बल्कि मनोविज्ञान से ही संभव हो सकता है।
सिग्मण्ड फ्रायड 1885
में फ्रांसीसी न्यूरोलॉजिस्ट और शारीरिक विकृति विज्ञान के प्रोफेसर
जीन-मार्टिन चारकोट के पास तीन महीने की फ़ेलोशिप पर अध्ययन करने के लिए पेरिस
गए, जो सम्मोहन में अनुसन्धान कर रहे थे। चारकोट हिस्टीरिया
का इलाज सम्मोहन विधि से करते थे। उनसे ही फ्रायड ने सीखा कि हिस्टीरिया के रोगी
को सम्मोहन से किस तरह उपचार किया जा सकता है।
फ्रायड वहीं से यह भी विश्वस्त हो गए कि हिस्टीरिया का मौलिक कारण शारीरिक
व्याधि न होकर मानसिक व्याधि होता है। फ्रायड : मनोविश्लेषण (A
General Introduction to Psychoanalysis के हिंदी अनुवाद पुस्तक ) में अनुवादक ने लिखा है "रोगी सम्मोहित होने के बाद प्रश्नों के जो
उत्तर देता था, वे उसे जागने पर या तो बहुत कम याद होते थे,
और या बिलकुल भी याद नहीं होते थे। यहीं से फ्रायड की मनोविश्लेषण
सम्बन्धी खोज आरम्भ हुई। इस दिशा में आगे बढ़ते-बढ़ते फ्रायड ने अपने प्रेक्षणों के
आधार पर वे सब सिद्धांत प्रतिपादित किये जो आजकल 'फ्रायड
के मनोविश्लेषण-सम्बन्धी-सिद्धांत ' के नाम से प्रसिद्द हैं”।[1] मनोविश्लेषण फ्रायड द्वारा खोजी गई एक मानसिक चिकित्सा विधि है। जिसकी
सहायता से मानसिक रोगों का सरल और स्थाई इलाज किया जा सकता है। अज्ञात अंतर्मन के अंतर्द्वंदों तथा भावना ग्रंथियों का ज्ञान
इस विधि द्वारा सरलता से किया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि मनोविश्लेषण से
तात्पर्य है अंतःकरण को समझना। इसका मूल लक्ष्य रोगी का स्वयं को सही ढंग से समझने
में मदद करना होता है जिससे वह स्वयं को पहले से अधिक अच्छे तरीके से समझकर
समायोजित हो सके तथा व्यवहार कर सके। James C. Coleman (1972) ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "फ्रायड के
अनुसार मनुष्य के असामान्य व्यवहार के पीछे मुख्य कारण अचेतन में उपस्थित द्वन्द
होता है। इस सिद्धांत में मानसिक विकृतियों के उत्पन्न होने में दमन एवं अचेतन
प्रक्रियाओं की भूमिका पर बल दिया गया है।[2]
फरनाल्ड एवं फरनाल्ड (Fernald
& Fernald, 1999) ने मनोविश्लेषण को
परिभाषित करते हुए कहा है कि मनोविश्लेषण फ्रायड के विचारों पर आधारित मनुष्य के
व्यवहार को समझने का एक सिद्धान्त है जिसमें व्यवहार को अचेतन रूप से निर्धारित
करने वाले तत्वों पर बल दिया जाता है। वैरन (R.A. 2001) के अनुसार "मनोविश्लेषण सिद्धान्त फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त पर
आधारित वह पद्धति है जिसमें आयोजक द्वारा रोगी की दमित अचेतन सामग्री को चेतन में
लाने का प्रयास किया जाता है”।[3] उपरोक्त विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मनोविश्लेषण सिद्धान्त
असामान्य व्यवहार के लिए अचेतन मन में दमित रूप से गहराई में दबे हुए द्वंदों,
कुण्ठाओं और आवेगों को उत्तरदायी मानता है। फ्रायड ने स्वयं
मनोविश्लेषण पद के तीन अर्थ बताये हैं -
Ø मनोविश्लेषण
मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के उपचार की एक विधि है।
Ø मनोविश्लेषण
व्यक्तित्व का एक सिद्धान्त है।
Ø मनोविश्लेषण
मनोविज्ञान का एक सम्प्रदाय या स्कूल है।
[4]
फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धान्त ही
पहला उपक्रम है जो मानसिक उथल-पुथल से मनुष्य में पैदा हुई अस्वस्थता का निदान
उसके मन की गहराई में गोता लगाकर करने का उचित मार्ग सुझाता है। अन्यथा उससे पहले
ऐसे रोगों के निदान के लिए भी मनुष्य के शारीरिक और चेतन स्तर पर ही इलाज के
तुक्के प्रयोग किये जाते थे। फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धांत मनुष्य के जीवन को
संतुलित और चलायमान बनाये रखने में एक क्रान्तिकारी अनुसन्धान सिद्ध हुआ इसमें कोई
संदेह नहीं किया जा सकता है।
“Right
or Wrong, Sigmund Freud clearly set personality psychology on fruitful paths of
inquiry, and for that alone we must be veritably grateful.”[5]
- Dr Raveesh Kumar
[1] कुमार, देवेंद्र, (2015), मनोविश्लेषण
: फ्रायड, दिल्ली : राजपाल एंड संस,
पृ० – 06
[2] Coleman,
James C, (1984), Abnormal psychology and modern life, London, Scott Foresman
& Company, p. 54
[3] Baren, R.S., (2012), AP Psychology 5th
Edition, NewYork: Barron’s Educational Series, p. 226
[4] सिंह, अरुण कुमार, (2006), मनोविज्ञान
के सम्प्रदाय एवं इतिहास, नई दिल्ली : श्री
जैनेन्द्र प्रेस, पृ० - 285
[5] Hall, et.
Al., (1985), Introduction to theories of personality, New York: John Wiley
& Sons, p. 63
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