मनुष्य का जीवन उसके विचारों की ही प्रतिकृति है। उसकी सफलता-असफलता, उन्नति-अवनति, सुख-दुःख, शान्ति-अशान्ति आदि सभी उसके द्वारा आसपास के वातावरण से ग्रहण किये गए विचारों पर निर्भर करते हैँ। मनुष्य के व्यक्तित्व विकास में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी सन्दर्भ में डॉ हेनरी लिडनहर ने अपनी पुस्तक "फिलॉसफी ऑफ़ नेचुरल थेरेप्यूटिक्स" में लिखा है कि
“व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में उत्कृष्ट विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विचारशक्ति ही कर्म की प्रेरणास्रोत होती है”।[1]
किसी व्यक्ति के जीवनकाल में उसके द्वारा किये गए कार्यों से ही उसका अवलोकन किया जाता है और यह भी सत्य है कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में जो भी करता है वह उसकी सोच की ही परिणीति होती है। आधुनिक मनोविज्ञान के पिता कहे जाने वाले डॉ सिग्मंड फ़्रॉयड भी इससे अछूते नहीं कहे जा सकते हैँ। उनके द्वारा प्रतिपादित विचार, सिद्धांत और मनोवैज्ञानिक अनुसन्धान पर उनके जीवनकाल की घटनाओं का असर पड़ना स्वाभाविक है। उनके जीवन की कुछ घटनाओं पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि उनके जीवन भर के कार्यों पर उन घटनाओं की स्पष्ट छाप दिखाई देती हैं।
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Dr Sigmund Freud |
बचपन के
आसपास के वातावरण और घटित घटनाओं से फ्रायड ने आत्म विश्लेषण के माध्यम से Oedipus
Complex और स्वप्न विश्लेषण जैसे तथ्यों को समझा। "स्टोलोरो
एट अल" 1978 के अनुसार “फ्रायड
ने अपने निजी अनुभवों को व्यक्त करके सम्पूर्ण मानवता के अनुभव करार दे दिया है।
यह उनके अचेतन का द्वन्द है जिसमें एक ओर
वह अपनी माँ की उनका ध्यान रखने वाली और दुलार करने वाली छवि के प्रति रक्षात्मक
रवैया अपनाकर उनके पक्ष में खड़े होते हैं और तत्काल दूसरी ओर उनके बाद अन्य बच्चे
पैदा करके उनके स्नेह को अन्य में विभाजित करके उन्हें धोखा देने वाली छवि के
प्रति ईर्ष्या, निराशा, तनाव और घृणा
से भर जाते हैं। जिसमें माँ को खोने का भय उनके अचेतन में घर कर जाता है”।[2]
जे०
जे० मैकडरमाट ने अपने अध्ययन The
Writings of William James a Comprehensive Edition
में कहा है कि “जीवन को विचारों से गढ़ा जा
सकता है। इसी के अनुरूप जीवन की अभिव्यक्ति तत्सम्बन्धी क्रियाकलापों गतिविधियों
के रूप में ही होती है। जीवन की घटनाएँ ही कालांतर में उत्कृष्टता-निकृष्टता,
प्रेम-घृणा, सहानुभूति अथवा परपीड़न के रूप में
दृष्टिगत होती हैं”।[3] फ्रायड
स्वयं अपने ग्रन्थ 'ए जरनल इंट्रोडक्शन टु
साइको-अनालिसिस' में "स्वप्नों में अतिप्राचीन शैशवीय
विशेषताएँ" लेख के अंतर्गत इसी ओर इशारा करते हुए
लिखते हैं कि “छोटा बालक अपने नए जन्में भाई या बहिन के
प्रति प्रतिद्वंदता का भाव रखता है। उसे लगता है कि अब माता पिता नवागंतुक बच्चे
पर ज्यादा ध्यान देंगे तथा उसे मिलने वाला स्नेह विभाजित हो जायेगा। उसे अपनी
वस्तुएँ भी साझा करनी पड़ेगी। यह अवधारणा बाल मन की गहराइयों में बैठ जाती है और
बड़े होने तक पलती-पनपती रहती है। छोटे बच्चे और नवागंतुक की आयु में जितना कम अंतर
होता है यह प्रतिद्वन्दता उतनी ही अधिक पाई जाती है”।[4]
फ्रायड
के जीवन काल में वह अनेक विद्वानों के संपर्क में आये तथा समयानुसार उनकी
मान्यताओं में अपेक्षित परिवर्तन भी हुए। जैसे उन्होंने कुछ समय विद्युत चिकित्सा
और सम्मोहन या हिप्नॉटिज़्म को अपनाया और जब उन्हें पता चला कि विद्युत् चिकित्सा
की पुस्तक (डब्ल्यू अर्ब लिखित) कल्पित बातों से भरी पड़ी है तो उन्होंने सम्मोहन
से ही हिस्टीरिया का इलाज करते रहे। फ्रायड पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ये
बताया कि मानसिक रोग पूर्णतः मनोवैज्ञानिक कारकों से भी उत्पन्न होता है जबकि 19
वीं शताब्दी के अंत तक ऐसा समझा जाता था कि मानसिक रोग सिर्फ दैहिक
कारकों से होता है।
फ्रायड
ने मानवी व्यक्तित्व की अंतरंग परतों का सभी के समक्ष एक के बाद एक अपने अनुसार
खोल कर विश्लेषण कर दिया। उनकी व्यक्तित्व संबंधी इसी खोज को मनोविश्लेषणात्मक
सिद्धांत कहा जाता है। प्रस्तुत अध्याय में शोधकर्ता द्वारा डॉ सिग्मंड फ्रायड के
मनोवैज्ञानिक विचारों पर चिन्तन किया गया है।
- Dr Raveesh Kumar
[1] लिडनहर, डॉ हेनरी (2005), फिलॉसफी
ऑफ़ नेचुरल थेरेप्यूटिक्स, लंदन : वर्मिलिओन
पब्लिशर्स
[2] Dianna T.
Kenny, (2018), Encyclopaedia of Personality and Individual Differences, Switzerland:
Springer
Cham, p. 24.
[3] McDermott,
John J., (1977), The writings of William James: a comprehensive edition,
Chicago: University of Chicago Press, p 236
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